Adolf Hitler Alligator Saturn In Russia Moscow Darwin Museum | Here’s All You Need To Know About Saturn Alligator | हिटलर के पसंदीदा मगरमच्छ को सहेज कर रखेगा रूस का म्यूजियम, मई में हुई थी मौत
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वॉशिंगटनएक महीने पहले
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हिटलर के मगरमच्छ यानी एलिगेटर की मौत इसी साल मई में मॉस्को के जू में हुई थी। तब उसकी उम्र 84 साल थी। अब इसे मॉस्को के ही डार्विन म्यूजियम में सहेज कर रखने की तैयारी है।
मॉस्को का ऐतिहासिक डार्विन म्यूजियम एक मगरमच्छ की मौत के बाद भी उसे सहेज कर रखने जा रहा है। 84 साल के इस एलिगेटर की मौत इसी साल मई में मॉस्को के जू (ZOO) में हुई थी। दावा किया जाता है कि यह मगरमच्छ तानाशाह हिटलर का था। इसका नाम सैटर्न था।
ब्रिटिश सैनिकों को मिला था सैटर्न
सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद ब्रिटेन के सैनिकों को बर्लिन में यह एलिगेटर मिला था। बाद में इसे रूसी सेना को सौंप दिया गया। 1946 में इसे मॉस्को लाया गया और यहां के चिड़ियाघर में रखा गया। करीब 60 साल तक लोग सैटर्न को देखते रहे। मई में सैटर्न की मौत हो गई और इसकी स्किन यानी त्वचा डार्विन म्यूजियम को सौंप दी गई। यहां के स्पेशलिस्ट्स ने इस पर काम किया। कोविड-19 के प्रतिबंध हटने के बाद जब भी हालात सामान्य होंगे और यह म्यूजियम फिर खुलेगा तो लोग मृत एलिगेटर सैटर्न को देख सकेंगे।

डार्विन म्यूजियम में सैटर्न को नया रूप देता स्पेशलिस्ट।
बर्लिन के जू में भी रहा सैटर्न
सैटर्न नाजी शासनकाल के दौरान बर्लिन के जू में भी रहा। कहा जाता है कि हिटलर के पास जितने पालतू जानवर थे, उनमें सैटर्न भी एक था। रूस के लेखर बोरिस एकुनिन भी यही दावा करते हैं। मॉस्को जू के अफसर दिमित्री वेसेलिएव कहते हैं- इसमें कोई शक नहीं कि यह एलिगेटर हिटलर को बहुत पसंद था।
सैटर्न का जन्म 1936 में मिसिसिपी के जंगलों में हुआ। इसे पकड़ने के बाद बर्लिन के जू लाया गया था। 1943 में बर्लिन पर बमबारी हुई और इसके बाद सैटर्न लापता हो गया। तीन साल बाद इसे ब्रिटिश सैनिकों ने खोजा। माना जाता है कि इस दौरान यह किसी बेसमेंट, अंधेरे कोने या सीवेज ड्रेन्स में छिपा रहा।

कोरोना का दौर थमने के बाद जब भी म्यूजियम खुलेगा तो लोग हिटलर के इस पसंदीदा मगरमच्छ को देख सकेंगे।
मगरमच्छ के आंसू
1990 के दशक में सोवियत संघ का पतन हुआ। एक देश कई हिस्सों में बंट गया। रूस की पार्लियामेंट पर बमबारी हुई। कहा जाता है कि इस दौरान सैटर्न की आंखों में भी आंसू आ गए थे। शायद इसलिए क्योंकि उसे 1943 में बर्लिन पर हुई बमबारी याद आ गई थी। म्यूजियम के डायरेक्टर दिमित्री वेसेलिएव कहते हैं- यह रूस के एलिगेटर का दूसरा जन्म है।